1.भारत ने किया जलवायु समझौते का अनुमोदन:- विश्व में तीसरे सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक भारत ने रविवार को ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते का अनुमोदन कर दिया, जिससे इसके वर्ष के अंत तक अमल में आ जाने की उम्मीद बढ़ गई है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा हस्ताक्षरित समझौते के अनुमोदन के दस्तावेज यहां आयोजित एक विशेष समारोह में संयुक्त राष्ट्र में करार विभाग (ट्रीटीज डिविजन) के प्रमुख सैंटियागो विलालपांडो को सौंपा। अकबरुद्दीन ने यह दस्तावेज महात्मा गांधी की 147वीं जयंती के मौके पर आयोजित एक कार्यक्र म में सौंपा, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष अधिकारी एवं वरिष्ठ राजनयिक मौजूद थे। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने भारत के ‘‘जलवायु नेतृत्व’ की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘‘सभी भारतीयों को धन्यवाद’। उन्होंने कहा कि भारत द्वारा पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते का अनुमोदन करने के कदम ने इस ऐतिहासिक समझौते को इस वर्ष लागू करने के लक्ष्य की दिशा में विश्व को और आगे बढ़ा दिया है। बान ने अपने संदेश में कहा कि लोगों और इस ग्रह के लिए गांधी और उनकी विरासत का स्मरण करने का इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता कि भारत ने पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते का अनुमोदन करने का दस्तावेज सौंप दिया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने ट्वीट किया, ‘‘भारत ने अपना वादा कायम रखा। गांधीजी की जयंती पर हमने पेरिस जलवायु समझौते के अनुमोदन का दस्तावेज सौंप दिया।’
• दिसम्बर 2015 में 185 देशों ने यह समझौता किया था
• भारत ने इस वर्ष 22 अप्रैल को न्यूयार्क में पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे
• अब तक 191 देश पेरिस समझौते पर कर चुके हैं हस्ताक्षर
• अब तक 26 ऐसे देशों ने इसका अनुमोदन किया है, जिनकी भागीदारी कार्बन उत्सर्जन में 39 प्रतिशत है
• भारत ने पेरिस समझौते का अनुमोदन करने के लिए दो अक्टूबर का दिन चुना था, गांधी जी सतत विकास के समर्थक थे
• दिसम्बर 2015 में 185 देशों ने यह समझौता किया था
• भारत ने इस वर्ष 22 अप्रैल को न्यूयार्क में पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे
• अब तक 191 देश पेरिस समझौते पर कर चुके हैं हस्ताक्षर
• अब तक 26 ऐसे देशों ने इसका अनुमोदन किया है, जिनकी भागीदारी कार्बन उत्सर्जन में 39 प्रतिशत है
• भारत ने पेरिस समझौते का अनुमोदन करने के लिए दो अक्टूबर का दिन चुना था, गांधी जी सतत विकास के समर्थक थे
2. चौकस रणनीति ने बनाया कालाधन बाहर लाने की स्कीम को सफल:-
काले धन को बाहर लाने के लिए आई स्कीम की अपार सफलता की कहानी यूं ही नहीं लिखी गई। इसमें मौके की नजाकत के हिसाब से बदली रणनीति और सरकार में शीर्ष स्तर से रखी जा रही प्रति पल की निगरानी ने अहम भूमिका निभाई है। स्कीम को केवल लोगों के रेस्पांस के भरोसे न छोड़कर छिपा कर रखे गए धन को बाहर लाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करने के हर संभव कदम उठाए गए। नतीजा सबके सामने है कि 65000 करोड़ रुपये से अधिक का काला धन अब सिस्टम का हिस्सा बन गया है। 30000 करोड़ रुपये से अधिक के कर राजस्व ने सरकार के राजकोषीय संतुलन को भी बड़ी राहत दी है।
देश की अर्थव्यवस्था के विकास के लिए काले धन को बाहर लाने के महत्व को सरकार शुरू से ही समझ रही थी। यही वजह थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत पूरी सरकार विदेश में छिपे काले धन के साथ घरेलू स्तर पर काले धन को बाहर लाने के प्रयास कर रही थी। इसके लिए कई तरह के कदम उठाए गए जिनमें आयकर नियमों को कड़ा बनाने से लेकर काला धन कानून और बेनामी ट्रांजैक्शन जैसे नए कानून बनाना भी शामिल रहा।
इस साल पहली जून से शुरू हुई आय घोषणा स्कीम (आइडीएस) में सरकार का उद्देश्य घरेलू स्तर पर छिपे काले धन को बाहर लाना था। लेकिन शुरुआती स्तर पर लोगों के ठंडे रेस्पांस के बाद सरकार ने महसूस किया कि कहीं इस स्कीम का अंजाम भी पहले लाई गई स्कीमों की तरह न हो जाए। इसके बाद ही सरकार की रणनीति बदली और सूत्र बताते हैं कि जून के आखिरी सप्ताह में ही तय हो गया कि काले धन को बाहर लाने के लिए हर तरह के उपाय आजमाने होंगे। इसमें लोगों को स्कीम के तहत छिपी आय की घोषणा करने के लिए प्रोत्साहित करने से लेकर ऐसा न करने पर बाद में कड़े दंड को भुगतने के लिए तैयार रहने का संदेश देने के उपाय भी शामिल थे।
सूत्रों के मुताबिक स्कीम पर शुरुआत से ही शीर्ष स्तर से नजर रखी जा रही थी। वित्त मंत्रलय से लेकर खुद प्रधानमंत्री कार्यालय तक राजस्व विभाग और इसके मुखिया राजस्व सचिव के साथ निरंतर संपर्क में था। बताया जाता है कि शुरुआती ठंडेपन के बाद हुई एक उचस्तरीय बैठक में रणनीति को सिरे से बदलने पर विचार हुआ। तय हुआ कि एक आक्रामक प्रचार अभियान के साथ उतरा जाए जिसमें लोगों को इस स्कीम के मायने समझाने, कालेधन को बाहर लाने के लिए प्रोत्साहित करना तो शामिल हो ही बल्कि स्कीम की अवधि के बाद छिपे धन की जानकारी मिलने पर कड़े नतीजों का संदेश भी दिया जाए। माना गया कि इस तरह के कदमों का मनोवैज्ञानिक असर भी होगा। यही वजह है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ खुद प्रधानमंत्री लोगों में जागरूकता जगाने के लिए मैदान में उतरे। प्रधानमंत्री ने तो इस दौरान लगभग प्रत्येक मन की बात में लोगों को इस स्कीम का हिस्सा बनने को प्रेरित किया। राजस्व सचिव हसमुख अढिया के नेतृत्व में राजस्व विभाग ने भी इस अवधि में देश भर में 550 से अधिक सार्वजनिक सभाएं कीं।
इसके अतिरिक्त इससे पूर्व काले धन के मामले में सरकार की तरफ से उठाए गए कदमों ने भी लोगों को इस स्कीम का हिस्सा बनने को प्रेरित किया। एचएसबीसी बैंक से जुड़े 175 मामलों में 164 में मुकदमा दर्ज हुआ। बीते दो ढाई साल में आयकर विभाग की तरफ से सर्च और सर्वे के मामलों में भी काफी तेजी आई जिसमें 1986 करोड़ रुपये जब्त किए गए और 56738 करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता लगा। यहां तक कि आयकर विभाग ने क्रेडिट कार्ड आदि के जरिये जरूरत से यादा किए जा रहे खर्चो को भी निगरानी पर रखा और लोगों को नोटिस भेज पूछताछ की गई। स्कीम की अवधि में ऐसे मामलों का प्रचार भी हुआ और वित्त मंत्रलय के अधिकारी मानते हैं कि इसका लोगों पर मनोवैज्ञानिक असर भी हुआ। इसकी वजह से वे स्कीम का हिस्सा बनने के लिए आगे आए।
काले धन को बाहर लाने के लिए आई स्कीम की अपार सफलता की कहानी यूं ही नहीं लिखी गई। इसमें मौके की नजाकत के हिसाब से बदली रणनीति और सरकार में शीर्ष स्तर से रखी जा रही प्रति पल की निगरानी ने अहम भूमिका निभाई है। स्कीम को केवल लोगों के रेस्पांस के भरोसे न छोड़कर छिपा कर रखे गए धन को बाहर लाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करने के हर संभव कदम उठाए गए। नतीजा सबके सामने है कि 65000 करोड़ रुपये से अधिक का काला धन अब सिस्टम का हिस्सा बन गया है। 30000 करोड़ रुपये से अधिक के कर राजस्व ने सरकार के राजकोषीय संतुलन को भी बड़ी राहत दी है।
देश की अर्थव्यवस्था के विकास के लिए काले धन को बाहर लाने के महत्व को सरकार शुरू से ही समझ रही थी। यही वजह थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत पूरी सरकार विदेश में छिपे काले धन के साथ घरेलू स्तर पर काले धन को बाहर लाने के प्रयास कर रही थी। इसके लिए कई तरह के कदम उठाए गए जिनमें आयकर नियमों को कड़ा बनाने से लेकर काला धन कानून और बेनामी ट्रांजैक्शन जैसे नए कानून बनाना भी शामिल रहा।
इस साल पहली जून से शुरू हुई आय घोषणा स्कीम (आइडीएस) में सरकार का उद्देश्य घरेलू स्तर पर छिपे काले धन को बाहर लाना था। लेकिन शुरुआती स्तर पर लोगों के ठंडे रेस्पांस के बाद सरकार ने महसूस किया कि कहीं इस स्कीम का अंजाम भी पहले लाई गई स्कीमों की तरह न हो जाए। इसके बाद ही सरकार की रणनीति बदली और सूत्र बताते हैं कि जून के आखिरी सप्ताह में ही तय हो गया कि काले धन को बाहर लाने के लिए हर तरह के उपाय आजमाने होंगे। इसमें लोगों को स्कीम के तहत छिपी आय की घोषणा करने के लिए प्रोत्साहित करने से लेकर ऐसा न करने पर बाद में कड़े दंड को भुगतने के लिए तैयार रहने का संदेश देने के उपाय भी शामिल थे।
सूत्रों के मुताबिक स्कीम पर शुरुआत से ही शीर्ष स्तर से नजर रखी जा रही थी। वित्त मंत्रलय से लेकर खुद प्रधानमंत्री कार्यालय तक राजस्व विभाग और इसके मुखिया राजस्व सचिव के साथ निरंतर संपर्क में था। बताया जाता है कि शुरुआती ठंडेपन के बाद हुई एक उचस्तरीय बैठक में रणनीति को सिरे से बदलने पर विचार हुआ। तय हुआ कि एक आक्रामक प्रचार अभियान के साथ उतरा जाए जिसमें लोगों को इस स्कीम के मायने समझाने, कालेधन को बाहर लाने के लिए प्रोत्साहित करना तो शामिल हो ही बल्कि स्कीम की अवधि के बाद छिपे धन की जानकारी मिलने पर कड़े नतीजों का संदेश भी दिया जाए। माना गया कि इस तरह के कदमों का मनोवैज्ञानिक असर भी होगा। यही वजह है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ खुद प्रधानमंत्री लोगों में जागरूकता जगाने के लिए मैदान में उतरे। प्रधानमंत्री ने तो इस दौरान लगभग प्रत्येक मन की बात में लोगों को इस स्कीम का हिस्सा बनने को प्रेरित किया। राजस्व सचिव हसमुख अढिया के नेतृत्व में राजस्व विभाग ने भी इस अवधि में देश भर में 550 से अधिक सार्वजनिक सभाएं कीं।
इसके अतिरिक्त इससे पूर्व काले धन के मामले में सरकार की तरफ से उठाए गए कदमों ने भी लोगों को इस स्कीम का हिस्सा बनने को प्रेरित किया। एचएसबीसी बैंक से जुड़े 175 मामलों में 164 में मुकदमा दर्ज हुआ। बीते दो ढाई साल में आयकर विभाग की तरफ से सर्च और सर्वे के मामलों में भी काफी तेजी आई जिसमें 1986 करोड़ रुपये जब्त किए गए और 56738 करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता लगा। यहां तक कि आयकर विभाग ने क्रेडिट कार्ड आदि के जरिये जरूरत से यादा किए जा रहे खर्चो को भी निगरानी पर रखा और लोगों को नोटिस भेज पूछताछ की गई। स्कीम की अवधि में ऐसे मामलों का प्रचार भी हुआ और वित्त मंत्रलय के अधिकारी मानते हैं कि इसका लोगों पर मनोवैज्ञानिक असर भी हुआ। इसकी वजह से वे स्कीम का हिस्सा बनने के लिए आगे आए।
3. माली के जरिये फ्रेंच प्रभाव वाले अफ्रीकी मुल्कों में भारत की दस्तक:-
माली के उत्तरी क्षेत्र के ग्रामीण इलाके अब भी आतंकी समूहों के कब्जे में हैं। वे जब-तब शहरों में हमले करते रहते हैं। इसी कारण यूएन शांति सेना माली में है। इन सैनिकों की चहल-पहल राजधानी बामको में दिखती है। बामको में आतंकी हमलों की आशंका बरकरार है। बावजूद इसके उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी एक दिन के दौरे पर यहां आए। उन्होंने माली के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री से भेंट करने के साथ ही संसद को भी संबोधित किया। भारत, माली को फ्रेंच प्रभाव वाले अफ्रीकी देशों में अपना असर कायम करने में सहायक बनने वाले देश के रूप में देख रहा है। माली 1960 में आजाद हुआ एक गरीब देश है। लोकतंत्र को यहां अभी मजबूती मिलनी बाकी है। गरीबी, अशिक्षा से उबरकर विकास के रास्ते पर तेजी से आगे बढने के लिए माली दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की मदद चाहता है। भारत भी माली में अपने लिए तमाम अवसर देख रहा है, क्योंकि यह देश सोने के अलावा जिप्सम, यूरेनियम, ग्रेनाइट आदि खनिज से संपन्न है।
माली की कमजोर हालत की झलक उसकी नेशनल असेंबली की इमारत में भी नजर आती है। भारत के किसी आम सरकारी भवन की तरह दिखने वाली माली की संसद में प्रवेश करते ही किसी ने टिप्पणी की इससे अछा तो हमारे शहर के नगर निगम का दफ्तर है। संसद के ठीक सामने ही बामको का मशहूर आर्टीजना बाजार है। उपराष्ट्रपति के साथ दौरे पर गए मीडिया दल के सदस्य और कुछ अन्य जब बाजार पहुंचे तो वहां उन्हें अमिताभ बचन के समर्थक मिले। उन्होंने ही बताया कि यह ब्लैक मार्केट है और यहां मोलभाव तो करना ही होगा। संसद के सामने चोर बाजार किसी को भी हैरान कर सकता है, लेकिन आखिरकार माली एक गरीब मुल्क है।
माली के उत्तरी क्षेत्र के ग्रामीण इलाके अब भी आतंकी समूहों के कब्जे में हैं। वे जब-तब शहरों में हमले करते रहते हैं। इसी कारण यूएन शांति सेना माली में है। इन सैनिकों की चहल-पहल राजधानी बामको में दिखती है। बामको में आतंकी हमलों की आशंका बरकरार है। बावजूद इसके उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी एक दिन के दौरे पर यहां आए। उन्होंने माली के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री से भेंट करने के साथ ही संसद को भी संबोधित किया। भारत, माली को फ्रेंच प्रभाव वाले अफ्रीकी देशों में अपना असर कायम करने में सहायक बनने वाले देश के रूप में देख रहा है। माली 1960 में आजाद हुआ एक गरीब देश है। लोकतंत्र को यहां अभी मजबूती मिलनी बाकी है। गरीबी, अशिक्षा से उबरकर विकास के रास्ते पर तेजी से आगे बढने के लिए माली दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की मदद चाहता है। भारत भी माली में अपने लिए तमाम अवसर देख रहा है, क्योंकि यह देश सोने के अलावा जिप्सम, यूरेनियम, ग्रेनाइट आदि खनिज से संपन्न है।
माली की कमजोर हालत की झलक उसकी नेशनल असेंबली की इमारत में भी नजर आती है। भारत के किसी आम सरकारी भवन की तरह दिखने वाली माली की संसद में प्रवेश करते ही किसी ने टिप्पणी की इससे अछा तो हमारे शहर के नगर निगम का दफ्तर है। संसद के ठीक सामने ही बामको का मशहूर आर्टीजना बाजार है। उपराष्ट्रपति के साथ दौरे पर गए मीडिया दल के सदस्य और कुछ अन्य जब बाजार पहुंचे तो वहां उन्हें अमिताभ बचन के समर्थक मिले। उन्होंने ही बताया कि यह ब्लैक मार्केट है और यहां मोलभाव तो करना ही होगा। संसद के सामने चोर बाजार किसी को भी हैरान कर सकता है, लेकिन आखिरकार माली एक गरीब मुल्क है।
4. भारत में रह रहे सबसे ज्यादा गरीब : विश्व बैंक:- विश्व बैंक की एक ताजा रपट में कहा गया है कि दुनिया में 2013 में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वालों की सबसे अधिक संख्या भारत में थी। रपट के अनुसार उस वर्ष भारत की 30 प्रतिशत आबादी की औसत दैनिक आय 1.90 डालर से कम थी और दुनिया के एक तिहाई गरीब भारत में थे।पावर्टी एण्ड शेयर प्रासपेरिटी (गरीबी और साझा समृद्धि) शीर्षक इस रपट में कहा गया है कि नियंतण्र अर्थव्यवस्था की वृद्धि ‘‘क्षमता से नीचे’ चल रहे होने के बावजूद पूरी दुनिया में गरीबी घटी है। रपट मंत कहा गया है, ‘‘भारत सबके बीच ऐसा देश है जहां प्रति दिन 1.90 डालर की आय वाली गरीबी की रेखा के अंतराष्ट्रीय मानक से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या सबसे अधिक है। यह संख्या नाइजीरिया के 8.6 करोड़ गरीबों की संख्या के 2.5 गुणा से भी अधिक है। नाईजरिया दुनिया में गरीबों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है।’रपट के अनुसार 2013 में भारत में 30 प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा के नीचे रह रहे थे। गणना के हिसाब से उनकी संख्या 22.4 करोड़ थी। वर्ष के दौरान पूरी दुनिया में गरीबों की संख्या करीब 80 करोड़ थी जो वर्ष 2012 की संख्या से 10 करोड़ कम थी। गरीबी में यह गिरावट मुख्य रूप से एशिया प्रशांत क्षेत्र में हुई प्रगति का परिणाम है। इसमें मुख्य रूप से चीनी, इंडोनेशिया और भारत का योगदान है।दुनिया में निपट गरीबी में रहने वाले आधे लोग सहारा मरुस्थल के दक्षिण में रहने वाले देशों में थे। रपट के अनुसार दक्षिण एशिया क्षेत्र को छोड़ सभी क्षेत्रों में औसत आबादी के हिसाब से साझा समृद्धि का प्रीमियम बेहतर हुए। भारत की बड़ी आबादी और नकारात्मक प्रीमियम से क्षेत्री औसत पर प्रतिकूल असर पड़ा। विश्व में प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से सबसे नीचे के 40 देशों में 2011 में औसत प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 8,861 डालर थी। पर ब्राजील में नीचे की 40 प्रतिशत आबादी की औसत आय 1,819 डालर थी। भारत में यह आंकड़ा 664 डालर का था जो अमेरिका की तुलना में 13वां हिस्सा है।
5. ब्रिटेन मार्च से शुरू करेगा ब्रेक्जिट प्रक्रिया:-
ब्रिटेन मार्च 2017 के अंत 28 देशों वाले यूरोपीय संघ से बाहर निकलने की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू कर देगा। ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरीजा मे ने रविवार को यहां यह जानकारी दी। हालांकि उन्होंने इसके लिए कोई निश्चित तिथि नहीं बताई, सिर्फ इतना कहा कि मार्च के अंत में।
टेरीजा ने लिस्बन संधि के अनुछेद 50 को लागू करने की समय सीमा की भी पुष्टि की। जिसमें यूरोपीय संघ से निकलने की प्रक्रिया के लिए दो साल तय किए गए हैं। उन्होंने महारानी के अगले भाषण के दौरान ‘ग्रेट रीपील बिल’ लाने का भी वादा किया, जो संसदीय कर्तव्यों को निर्धारित करेगा। हालांकि प्रधानमंत्री टेरीजा लंबे समय से यह संकेत दे रही थीं कि वह ब्रेक्जिट प्रक्रिया अगले वर्ष में शुरू करेंगी। इसके बावजूद बहुत से समीक्षकों ने यह अनुमान लगाया था कि फ्रांस में राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनावों तक वह इसे टाल सकती हैं। अब टेरीजा की पुष्टि के साथ ही अनुमानों का दौर खत्म हो गया है।
बीबीसी को दिए एक बयान में टेरीजा ने कहा, ‘यह ब्रिटिश लोगों की स्वतंत्रता के लिए है, और यह सिर्फ यूरोपीय संघ (ईयू) के बारे में नहीं है, यह अपने राजनेताओं के प्रति लोगों में विश्वास को लेकर है। जनता ने जो कहा है, हम उसे पूरा करेंगे।’
ब्रिटेन मार्च 2017 के अंत 28 देशों वाले यूरोपीय संघ से बाहर निकलने की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू कर देगा। ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरीजा मे ने रविवार को यहां यह जानकारी दी। हालांकि उन्होंने इसके लिए कोई निश्चित तिथि नहीं बताई, सिर्फ इतना कहा कि मार्च के अंत में।
टेरीजा ने लिस्बन संधि के अनुछेद 50 को लागू करने की समय सीमा की भी पुष्टि की। जिसमें यूरोपीय संघ से निकलने की प्रक्रिया के लिए दो साल तय किए गए हैं। उन्होंने महारानी के अगले भाषण के दौरान ‘ग्रेट रीपील बिल’ लाने का भी वादा किया, जो संसदीय कर्तव्यों को निर्धारित करेगा। हालांकि प्रधानमंत्री टेरीजा लंबे समय से यह संकेत दे रही थीं कि वह ब्रेक्जिट प्रक्रिया अगले वर्ष में शुरू करेंगी। इसके बावजूद बहुत से समीक्षकों ने यह अनुमान लगाया था कि फ्रांस में राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनावों तक वह इसे टाल सकती हैं। अब टेरीजा की पुष्टि के साथ ही अनुमानों का दौर खत्म हो गया है।
बीबीसी को दिए एक बयान में टेरीजा ने कहा, ‘यह ब्रिटिश लोगों की स्वतंत्रता के लिए है, और यह सिर्फ यूरोपीय संघ (ईयू) के बारे में नहीं है, यह अपने राजनेताओं के प्रति लोगों में विश्वास को लेकर है। जनता ने जो कहा है, हम उसे पूरा करेंगे।’
6. दक्षेस देश अपने यहां से न फैलने दें आतंकवाद : नेपाल:-
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (दक्षेस) के वर्तमान अध्यक्ष नेपाल ने पाकिस्तान को सूचित कर दिया है कि इस्लामाबाद में नवम्बर में होने वाला 19वां दक्षेस सम्मेलन स्थगित कर दिया गया है। नेपाल ने इस्लामाबाद में प्रस्तावित शिखर बैठक के लिए उचित माहौल नहीं होने पर क्षोभ जताते हुए सदस्य देशों से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि वे अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं होने दें।नेपाल ने कहा कि दक्षेस समूह का वर्तमान अध्यक्ष होने के नाते नेपाल को लगता है कि दक्षेस सम्मेलन के आयोजन के लिए उपयुक्त माहौल बनाए जाने की जरूरत है। नेपाल ने हमेशा क्षेत्र में हुए आंकवाद की ¨नदा की है। भारत के उरी में 18 सितम्बर को सैन्य ठिकाने पर हुए आतंकवादी हमले की कड़ी ¨नदा की है जिसमें कई भारतीय सैनिक शहीद हुए हैं। नेपाल का विास है कि क्षेत्रीय सहयोग के लिए शांति और स्थिरता आवश्यक है। भारत ने इस सम्मेलन के लिए उपयुक्त माहौल नहीं होने का हवाला देते हुए इसमें शामिल नहीं होने की घोषणा की थी। इसके बाद भूटान, अफगानिस्तान, श्रीलंका तथा बंगलादेश ने भी इस सम्मेलन में नहीं जाने का निर्णय लिया था। आठ सदस्यीय दक्षेस के अध्यक्ष नेपाल ने इसके बाद सम्मेलन स्थगित करने की घोषणा की थी।हालांकि नेपाल ने यह कहा है कि वह सदस्य देशों से बात करेगा और अगला सम्मेलन आयोजित कराने के लिए ‘‘जरूरी’ कदम उठाएगा। नेपाल के विदेश मंत्री प्रकाश शरण माहत ने कहा कि नेपाल 19वें दक्षेस सम्मेलन के आयोजन के लिए सदस्य देशों को राजी करने के लिए जरूरी कदम उठाएगा और इन देशों के साथ बातचीत करेगा।पाक द्वारा सीमा पार से लगातार आतंकवाद फैलाए जाने की बात कहते हुए भारत ने पिछले सप्ताह कहा था कि मौजूदा परिस्थितियों में भारत सरकार इस्लामाबाद में प्रस्तावित सम्मेलन में शिरकत करने में असमर्थ है। माहत ने कहा कि दक्षेस के सदस्य देशों को सभी सदस्यों की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए सम्मेलन के आयोजन के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (दक्षेस) के वर्तमान अध्यक्ष नेपाल ने पाकिस्तान को सूचित कर दिया है कि इस्लामाबाद में नवम्बर में होने वाला 19वां दक्षेस सम्मेलन स्थगित कर दिया गया है। नेपाल ने इस्लामाबाद में प्रस्तावित शिखर बैठक के लिए उचित माहौल नहीं होने पर क्षोभ जताते हुए सदस्य देशों से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि वे अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं होने दें।नेपाल ने कहा कि दक्षेस समूह का वर्तमान अध्यक्ष होने के नाते नेपाल को लगता है कि दक्षेस सम्मेलन के आयोजन के लिए उपयुक्त माहौल बनाए जाने की जरूरत है। नेपाल ने हमेशा क्षेत्र में हुए आंकवाद की ¨नदा की है। भारत के उरी में 18 सितम्बर को सैन्य ठिकाने पर हुए आतंकवादी हमले की कड़ी ¨नदा की है जिसमें कई भारतीय सैनिक शहीद हुए हैं। नेपाल का विास है कि क्षेत्रीय सहयोग के लिए शांति और स्थिरता आवश्यक है। भारत ने इस सम्मेलन के लिए उपयुक्त माहौल नहीं होने का हवाला देते हुए इसमें शामिल नहीं होने की घोषणा की थी। इसके बाद भूटान, अफगानिस्तान, श्रीलंका तथा बंगलादेश ने भी इस सम्मेलन में नहीं जाने का निर्णय लिया था। आठ सदस्यीय दक्षेस के अध्यक्ष नेपाल ने इसके बाद सम्मेलन स्थगित करने की घोषणा की थी।हालांकि नेपाल ने यह कहा है कि वह सदस्य देशों से बात करेगा और अगला सम्मेलन आयोजित कराने के लिए ‘‘जरूरी’ कदम उठाएगा। नेपाल के विदेश मंत्री प्रकाश शरण माहत ने कहा कि नेपाल 19वें दक्षेस सम्मेलन के आयोजन के लिए सदस्य देशों को राजी करने के लिए जरूरी कदम उठाएगा और इन देशों के साथ बातचीत करेगा।पाक द्वारा सीमा पार से लगातार आतंकवाद फैलाए जाने की बात कहते हुए भारत ने पिछले सप्ताह कहा था कि मौजूदा परिस्थितियों में भारत सरकार इस्लामाबाद में प्रस्तावित सम्मेलन में शिरकत करने में असमर्थ है। माहत ने कहा कि दक्षेस के सदस्य देशों को सभी सदस्यों की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए सम्मेलन के आयोजन के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
7. भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापार से ज्यादा तस्करी:-
भारत और पाकिस्तान के बीच तस्करी के जरिये सालाना 50 करोड़ डालर से अधिक का अवैध व्यापार होता है जो आधिकारिक व्यापार का दोगुना है।उद्योग एवं वाणिज्य संगठन एसोचैम द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह बात कही गयी है। एसोचैम ने बताया कि उसने भारत के गृह मंत्रालय, लाहौर जर्नल आफ इकोनामिक्स, इंस्टीट्यूट आफ साउथ एशियन स्टडीज, नेशनल यूनिवर्सिटी आफ सिंगापुर समेत कई संस्थानों तथा शोधों के आधार पर यह आकलन किया है। एसोचैम ने कहा, तस्कर दोनों देशों की सीमा पर वस्तुओं का आदान-प्रदान कर तथा हवाई अड्डों एवं रेलवे स्टेशनों के जरिये‘‘ग्रीन चैनल’ सुविधा का दुरुपयोग कर अवैध व्यापार को अंजाम देते हैं। अवैध व्यापार अफगानिस्तान के जरिये भी होता है। अफगानिस्तान को आधिकारिक तौर पर वस्तुओं का निर्यात किया जाता है जहां से उसे पेशावर के रास्ते पाकिस्तान ले जाया जाता है।उद्योग संगठन ने अपने पेपर में कहा है कि अवैध व्यापार का सटीक आकलन कर पाना बेहद मुश्किल है। इसे विभिन्न स्रेतों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर आकलित किया गया है। विभिन्न शोध संगठन समय-समय पर अवैध व्यापार के बारे में आंकड़ें प्रकाशित करते रहते हैं और एसोचैम ने भी इन्हीं का सहारा लिया है।एसोचैम ने कहा, अवैध व्यापार करने वालों ने दोनों देशों में सूचनाओं के आदान-प्रदान, खतरों की जानकारी तथा उनके निदान का तंत्र विकसित कर लिया है। अवैध कारोबार को फलने-फूलने में मदद करने वाले तीन मुख्य कारक हैं शीघ्र भुगतान, कागजी कार्यवाही की आवश्यकता नहीं होना और न्यूनतम प्रक्रियात्मक जरूरतें।उसने कहा कि तस्करी के जरिये निर्यात, आयात की अपेक्षा अधिक है। अफगान रूट के अलावा इसके अन्य रास्तों में भारत-दुबई-पाकिस्तान, वाघा सीमा और श्रीनगर-मुजफ्फराबाद भी शामिल हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच तस्करी के जरिये सालाना 50 करोड़ डालर से अधिक का अवैध व्यापार होता है जो आधिकारिक व्यापार का दोगुना है।उद्योग एवं वाणिज्य संगठन एसोचैम द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह बात कही गयी है। एसोचैम ने बताया कि उसने भारत के गृह मंत्रालय, लाहौर जर्नल आफ इकोनामिक्स, इंस्टीट्यूट आफ साउथ एशियन स्टडीज, नेशनल यूनिवर्सिटी आफ सिंगापुर समेत कई संस्थानों तथा शोधों के आधार पर यह आकलन किया है। एसोचैम ने कहा, तस्कर दोनों देशों की सीमा पर वस्तुओं का आदान-प्रदान कर तथा हवाई अड्डों एवं रेलवे स्टेशनों के जरिये‘‘ग्रीन चैनल’ सुविधा का दुरुपयोग कर अवैध व्यापार को अंजाम देते हैं। अवैध व्यापार अफगानिस्तान के जरिये भी होता है। अफगानिस्तान को आधिकारिक तौर पर वस्तुओं का निर्यात किया जाता है जहां से उसे पेशावर के रास्ते पाकिस्तान ले जाया जाता है।उद्योग संगठन ने अपने पेपर में कहा है कि अवैध व्यापार का सटीक आकलन कर पाना बेहद मुश्किल है। इसे विभिन्न स्रेतों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर आकलित किया गया है। विभिन्न शोध संगठन समय-समय पर अवैध व्यापार के बारे में आंकड़ें प्रकाशित करते रहते हैं और एसोचैम ने भी इन्हीं का सहारा लिया है।एसोचैम ने कहा, अवैध व्यापार करने वालों ने दोनों देशों में सूचनाओं के आदान-प्रदान, खतरों की जानकारी तथा उनके निदान का तंत्र विकसित कर लिया है। अवैध कारोबार को फलने-फूलने में मदद करने वाले तीन मुख्य कारक हैं शीघ्र भुगतान, कागजी कार्यवाही की आवश्यकता नहीं होना और न्यूनतम प्रक्रियात्मक जरूरतें।उसने कहा कि तस्करी के जरिये निर्यात, आयात की अपेक्षा अधिक है। अफगान रूट के अलावा इसके अन्य रास्तों में भारत-दुबई-पाकिस्तान, वाघा सीमा और श्रीनगर-मुजफ्फराबाद भी शामिल हैं।
8. बिहार में स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना प्रारंभ :-
अब उच्च शिक्षा हासिल करने में ना तो गरीबी बाधक बनेगी और ना ही नौकरी तलाशने में पैसे की कमी आड़े आएगी। रविवार को सात निश्चय की अहम कड़ी आर्थिक हल युवाओं को बल के तहत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना, स्वयं सहायता भत्ता और कुशल युवा कार्यक्रम की शुरूआत की। तीनों योजनाओं का लाभ 20-25 वर्ष उम्र के युवाओं को होगा। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा कि जनता मौका दिया है तो जुबान की बजाए काम से बोलना चाहिए। हम काम में ही भरोसा रखते हैं। सात निश्चय की हरेक योजना समाज के हरेक तबके के लिए है। स्त्री-पुरुष, अगड़े-पिछड़े, हिंदू-मुसलमान हो या सिख-ईसाई, हरेक व्यक्ति को इसका लाभ होगा। काम तभी अच्छा माना जाता है जब समाज के आखिरी आदमी तक इसका लाभ पहुंचे। स्कूली छात्र-छात्राओं की साइकिल योजना इसका उदाहरण है।
क्या होगा क्रेडिट कार्ड से
स्टूडेंटक्रेडिट कार्ड योजना के तहत बारहवीं पास छात्र-छात्रा बीए, बीएससी, इंजीनियरिंग, मेडिकल, प्रबंधन और विधि की पढ़ाई के लिए कर्ज ले सकेंगे। कर्ज की अधिकतम सीमा कुछ भी हो सकती है लेकिन राज्य सरकार चार लाख रुपये तक के मूलधन और ब्याज पर बैंकों को गारंटी देगी। स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड के आवेदन के लिए छात्रों को बैंक तक नहीं जाना पड़ेगा
अब उच्च शिक्षा हासिल करने में ना तो गरीबी बाधक बनेगी और ना ही नौकरी तलाशने में पैसे की कमी आड़े आएगी। रविवार को सात निश्चय की अहम कड़ी आर्थिक हल युवाओं को बल के तहत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना, स्वयं सहायता भत्ता और कुशल युवा कार्यक्रम की शुरूआत की। तीनों योजनाओं का लाभ 20-25 वर्ष उम्र के युवाओं को होगा। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा कि जनता मौका दिया है तो जुबान की बजाए काम से बोलना चाहिए। हम काम में ही भरोसा रखते हैं। सात निश्चय की हरेक योजना समाज के हरेक तबके के लिए है। स्त्री-पुरुष, अगड़े-पिछड़े, हिंदू-मुसलमान हो या सिख-ईसाई, हरेक व्यक्ति को इसका लाभ होगा। काम तभी अच्छा माना जाता है जब समाज के आखिरी आदमी तक इसका लाभ पहुंचे। स्कूली छात्र-छात्राओं की साइकिल योजना इसका उदाहरण है।
क्या होगा क्रेडिट कार्ड से
स्टूडेंटक्रेडिट कार्ड योजना के तहत बारहवीं पास छात्र-छात्रा बीए, बीएससी, इंजीनियरिंग, मेडिकल, प्रबंधन और विधि की पढ़ाई के लिए कर्ज ले सकेंगे। कर्ज की अधिकतम सीमा कुछ भी हो सकती है लेकिन राज्य सरकार चार लाख रुपये तक के मूलधन और ब्याज पर बैंकों को गारंटी देगी। स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड के आवेदन के लिए छात्रों को बैंक तक नहीं जाना पड़ेगा