दोस्तों, जिस तरह से जीवन की सार्थकता एक सतत यात्री की भांति छोटे बड़े लक्ष्यों को हासिल करते जाने में है। उसी तरह जीवन के सूकून के लिए मोहब्बत भी जरूरी है। कई बच्चों ने अपने प्यार भरे जीवन के उतार-चढ़ाव और बिखराव की दास्तां भेजी है। वे लक्ष्य और प्रेम के बीच कन्फ्यूज हैं। उन्होंने लिखा है कि - वे अपनी ऊर्जा को किसी एक बिन्दु पर केन्द्रित नही कर पा रहे हैं। यही हाल कमोबेश हर युवक और युवती का है और हो भी क्यों न? यह उम्र ही कुछ ऐसी है कि - मन चंचलता पूर्वक गतिमान रहता है। उर्जा का अथाह पुंज मष्तिष्क को एकाग्र होने नही देता। इससे संयम और नियंत्रण की कमी होती है और मन वाह्य चीजों की ओर भागने लगता है। इच्छाओं की अनंत हिलोरें मन के समंदर में लहराने लगती है और कल्पनाओं के घोड़े पर सवार युवा मन अथाह सागर में गोते लगाता रहता है।युवा बिल्कुल बेसुध अवस्था में या फिर उत्तेजना में कोई काम करते हैं। सफल हुए तो बहक गये और असफल हुए तो बेहोश। एक में सफल होते हैं तो दूसरा फिसलने लगता है। रातों रात सबकुछ हासिल कर लेने की चाहत रखने वाली आज की आक्रामक और महत्वाकांक्षी पीढ़ी तनिक भी सब्र करने को तैयार नही है। मानो उड़कर चलने को बेताब हैं। कदमों से चलना गवारा नही है। उनकी इच्छा है कि - सबकुछ पलक झपकते ही मिल जायें लेकिन ऐसा कहाँ होता है। एक को पकडो तो दूसरा छूट जाता है। भले मनुष्य के पास दो आंखें हैं लेकिन वह दोनों साइड में एक साथ नही देख सकता है। दिन होगा तो रात नही होगी और रात होगा तो दिन नही। कभी-कभी कुछ लोग बेहद खुशनसीब होते हैं कि - उन्हें मनचाहे तरीके से सबकुछ मिल जाता है। जैसा वे सोंचते है। बिल्कुल परिकथा की तरह। लेकिन किसी से तुलना करना ठीक नही है।
हमेशा ध्यान रखें कि -
कभी किसी को मुकम्मल जहां नही मिलता।
कहीं जमीं तो कहीं आसमां नही मिलता।।
प्यार हर सख्स के लिए व्यक्तिगत मामला होता है। प्यार का मतलब सिर्फ हीर रांझा, सोहनी महिवाल, रोमियो जूलियट, लैला मजनू का प्यार नही है। प्यार के हजारों-लाखों रूप हैं।प्यार सिर्फ दैहिक नही बल्कि आत्मिक और आध्यात्मिक भी होता है। दैहिक प्रेम क्षणिक होता है जबकि वैचारिक प्रेम युगों-युगों तक याद किया जाता है। सदियों से लोग प्यार करते रहे हैं। और आज भी यह अनवरत जारी है। भूत भविष्य और वर्तमान हर युग के लिए यह एक शाश्वत सत्य है। जब तक सृष्टि में जीवन है। मोहब्बत जिंदा और जिंदा रहेगी। कितनों ने इश्क में जान दे दी। कितने ही तैयार बेठे है। जब मां अपने बच्चे को दुलारती है।........... जब फौजी सरहदों की रक्षा के लिए बर्फीली चोटियों पर बिना अपने दर्द की परवाह किये जीवन बलिदान कर देता है।............ जब किसान मिट्टी में से अनाज निकालने के लिए खुद को मिट्टी के सुपुर्द कर देता है।............. जब कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका की ख्वाहिशों के लिए बडे़ संकटों को भी गले लगा लेता है।........... जब कोई सच्चा समाज सेवी अपना सारा जीवन आम लोगों की निस्वार्थ सेवा में समर्पित कर देता है।.............. जब डाक्टर अपने मरीज की पीड़ा में अपनी पीड़ा महसूस करने लगता है।........ जब लेखक आम जनता के मुद्दों को खुद उनके नजरिए से देखता है और हूबहू सारा प्रतिबिंब उतार देता है।......... जब एक शिक्षक अपने शिष्य के बेहतर और शानदार करियर के लिए दिनरात निःशुल्क पढाने में मेहनत करता है।............. जब एक पिता रिक्शा चलाकर भी बच्चे में कलेक्टर बनने के हौंसले को उड़ान देता है।............ जब एक माली बाग के हर वृक्ष और पुष्प को संरक्षित करने के लिए धूप छांव की परवाह किये बगैर प्रायः डटा रहता है। इन सबमें जो चीज कामन हैं.... वह है समर्पण। लगाव। अपनापन। श्रद्धा- विश्वास और आस्था....... यह पवित्र प्रेम है। वासनारहित प्रेम। कुंठाओं के परे, आडंबर, इर्ष्या के परे...... श्रेष्ठ और सुगंधित प्रेम।
प्रेम की भावना जब पवित्र होती है।तब उसमें देवत्व पैदा हो जाता है। ऐसा प्रेम निःस्वार्थ होता है। राधा कृष्ण की तरह, राम सीता की तरह, शबरी, मीरा,...... की तरह। जहां कुछ पाने की लालसा और कुछ खोने का डर नही होता बल्कि सर्वस्व समर्पण करने की उच्चतर भावना होती है।
लेकिन आजकल के लिए ये बातें आदर्शवादी हैं। आज तो वस्तुओं की भांति प्रेम भी बाजारू चीज हो गई है। सिनेमा के पर्दे पर दिखने वाला भौंडापन ही आज इश्क का एकमात्र माडल बचा है। बोली-भाषा , जीवनशैली, रहन-सहन, खान-पान,...... सब कुछ सिनेमा से गहरे प्रभावित है। आज हिसाब-किताब रखकर प्यार किया जाता है। स्वार्थ सर्वोपरि है। हासिल करने की कामनाएँ........ आज त्याग करने की, भावनाओं से ज्यादा प्रबल है। आज की सोंच है कि - - - - - मिल जाये तो ठीक नही तो बर्बाद कर देंगे।तेजाब फेंक देंगे। न जियेंगे न जीने देंगे। मेरी नही हो सकती.............. तो किसी और की होने नही दूंगा। या तो मैं हासिल कर लूंगा या तोड़ दूंगा।
आज प्रेम प्रतिशोधपूर्ण हो गया है। बदले की भावना से संबध संचालित हो रहे हैं। आज कोई भी किसी को तनिक भी बर्दाश्त करने को तैयार नही है। इसलिए अहम की लड़ाई बढी है और तलाक के नजारे आम हो रहे हैं। लिव इन रिलेशनशिप का मॉडल भी Use & Throw तक सिमट गया है। प्रत्युशा बनर्जी का मामला इस मॉडल का लेटेस्ट एग्जामपल है। ऐसा नही है कि - आज प्रेम का रूप - स्वरूप विकृत हो गया है लेकिन यह जरूर है कि जमाने के मूल्यों और संस्कारों के मुताबिक उनमें भी बहुत परिवर्तन हो गया है। आज शरीर का खुलापन जितना बडा है। उतना विचारों में खुलापन और विस्तार नही आया है। कई बार देखने को मिलता है कि आधुनिक कपडों में लिपटे युवक-युवतियों का व्यवहार आदिम सोंच से ग्रसित होता है। जैसे- जातिवाद, नस्लवाद, संप्रदायवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद इत्यादि। महज दो चार फिल्में देखकर आने वाली क्षणिक आधुनिकता मल्टिप्लेक्स से निकलते ही हवा हो जाती है।
और कल तक जन्म जन्म तक प्यार निभाने का वादा करने वाले जोड़े..... एक झटके में अजनबी हो जाते हैं।
तभी तो किसी शायर ने कहा है कि -
तुम्हे गैरों से कब फुर्सत, हम अपने गम से कब खाली
चलो बस हो चुका मिलना, न तुम खाली न हम खाली।।
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मुकेश भींचर
लेखक, मोटिवशनल स्पीकर और युवा ब्लागर
( ये मेरे अपने विचार हैं। आप इससे सहमत अथवा असहमत होने और अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं)
धन्यवाद