1.कावेरी पर कर्नाटक को सुप्रीम कोर्ट की लताड़:- सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु को कावेरी नदी का जल देने संबंधी न्यायिक आदेश न मानने पर कर्नाटक सरकार को कड़ी फटकार लगाई। साथ ही कर्नाटक को आदेश दिया कि वह शनिवार से छह अक्टूबर (लगातार छह दिन) तक हर दिन छह हजार क्यूसेक जल छोड़े। न्यायालय ने कर्नाटक को चेतावनी दी कि किसी को पता नहीं चलेगा कि वह कब कानून के कोप का शिकार हो जाएगा। इस बीच, कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी जल विवाद पर चर्चा के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने एक बैठक बुलाई। इस दौरान विभिन्न विकल्पों पर चर्चा की गई।सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित होने के तथ्य के बावजूद राय सरकार को एक से छह अक्टूबर के दौरान तमिलनाडु के लिए छह हजार क्यूसेक जल छोड़ने का अंतिम अवसर दिया। जस्टिस दीपक मिश्र और जस्टिस उदय यू ललित की पीठ ने कहा कि राय होने के बावजूद कर्नाटक उसके आदेश की अवहेलना करके ऐसी स्थिति पैदा कर रहा है जिससे कानून के शासन को धक्का पहुंच रहा है। हमने अपने आदेश पर अमल के लिए कठोर कार्रवाई की दिशा में कदम उठाए होते लेकिन हमने कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड को निर्देश दिया है कि पहले वह वस्तुस्थिति का अध्ययन करे और एक रिपोर्ट पेश करे।अदालत ने केंद्र सरकार को कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड का गठन चार अक्टूबर तक करने का निर्देश देते हुए कहा कि कर्नाटक को अवहेलना करने वाले रुख पर अड़े नहीं रहना चाहिए क्योंकि किसी को यह नहीं मालूम कि वह कानून के कोप का कब शिकार हो जाएगा। शीर्ष अदालत ने इस प्रकरण से संबंधित सभी राज्यों कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी को आदेश दिया कि वे शनिवार शाम चार बजे तक अपने उन प्रतिनिधियों के नाम बतायें जिन्हें केंद्रीय जल संसाधन मंत्री की अध्यक्षता वाले बोर्ड में शामिल किया जाएगा। पीठ ने कहा, ‘हम यह मानते हैं कि देश के संघीय ढांचे का हिस्सा होने के नाते कर्नाटक स्थिति के अनुरूप खरा उतरेगा और कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड की वस्तुस्थिति के बारे में रिपोर्ट आने तक किसी प्रकार का भटकाव नहीं दिखाएगा।’ साथ ही न्यायालय ने कर्नाटक को याद दिलाया कि वह संविधान के अनुछेद 144 और शीर्ष अदालत के आदेश पर अमल में सहयोग के लिए बाध्य हैं। इससे पहले, मामले की सुनवाई शुरू होते ही कर्नाटक का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरिमन ने उनके और राज्य के मुख्यमंत्री के बीच हुए संवाद का न्यायालय में हवाला दिया। दूसरी ओर, तमिलनाडु की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफडे ने सारी स्थिति पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि कर्नाटक पहले ही अपना मन बना चुका है कि वह शीर्ष अदालत के निर्देशों का पालन नहीं करेगा।
2. पहले भरो जीएसटी फिर मिलेगी कर छूट:- एक अप्रैल 2017 से वस्तु एवं सेवा कर (GST ) लागू होने पर उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश सहित 11 राज्यों में विभिन्न उद्योगों को मिल रही केंद्रीय उत्पाद शुल्क जैसी परोक्ष टैक्स छूट समाप्त हो जाएंगी। जीएसटी के दायरे में आने वाले सभी कारोबारियों को पूरे देश में टैक्स जमा करना होगा लेकिन अगर केंद्र या कोई राज्य सरकार किसी उद्योग, व्यक्ति या फर्म को जीएसटी से छूट जारी रखना चाहती है तो उसे वसूली गई कर राशि अपने बजट से लौटानी होगी। वित्त मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में हुई जीएसटी काउंसिल की दूसरी बैठक में शुक्रवार को इस संबंध में सहमति बनी। हालांकि काउंसिल पहली बैठक में लिए गए फैसलों के मिनट्स को मंजूरी नहीं दे सकी।
काउंसिल की बैठक में हुए फैसलों के बारे में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि इसमें एक अहम मुद्दा केंद्र और राज्यों की ओर से फिलहाल दी जा रही परोक्ष कर छूटों का था। केंद्र सरकार ने पर्वतीय और पूर्वोत्तर के 11 राज्यों को केंद्रीय उत्पाद शुल्क के संबंध में कुछ छूटें दे रखी है। इसी तरह राज्यों ने भी अपने यहां उद्योगों को कई प्रकार की परोक्ष कर छूटें और प्रोत्साहन दिए हुए हैं।
जेटली ने कहा कि संभव है कि कुछ कर छूटें चरणबद्ध तरीके से समाप्त हो जाएं, लेकिन जो बची रहेंगी, उन्हें जीएसटी सिस्टम में कैसे समाहित किया जाए, इस बारे में काउंसिल ने विचार किया। काउंसिल में इस पर सहमति बनी कि जीएसटी सिस्टम में सभी छूट प्राप्त एंटिटीज (व्यक्ति, कंपनी या संस्था) पर टैक्स लगेगा। जब उन पर टैक्स लागू हो जाएगा, तो बाद में उनसे वसूलने वाली केंद्र या राज्य सरकार को अपने बजट के माध्यम से उक्त कर की राशि वापस करनी होगी। इस तरह जीएसटी सिस्टम में सभी को टैक्स का भुगतान करना पड़ेगा। अलबत्ता, अगर आपको टैक्स से छूट प्राप्त है और केंद्र या राज्य सरकार इस छूट को जारी रखना चाहती है, तो आप चुकाई गई कर राशि को वापस पाने के अधिकारी होंगे।
जेटली ने कहा कि कौन सी टैक्स छूटें खत्म होंगी या बरकरार रहेंगी, इस बारे फैसला केंद्र और राज्य करेंगे। राज्यों को तय करना होगा कि उन्हें किन उद्योगों को टैक्स छूट की सुविधा देनी है, उसके बाद वे उनसे वसूले गए टैक्स की राशि को लौटा सकेंगी।
यह जरूरी नहीं कि सभी प्रकार की टैक्स छूटें समाप्त हो जाएं, अगर आप कुछ को जारी रखना चाहते हैं तो पहले टैक्स का भुगतान करना होगा। बाद में भले ही केंद्र या राज्य सरकार उसे आपको वापस कर दे।
जीएसटी काउंसिल की पहली बैठक में हुए फैसलों के मिनट्स को मंजूरी नहीं जा सकी। दो राज्यों ने 22-23 सितंबर को हुई काउंसिल की पहली बैठक में सेवा कर के 11 लाख करदाताओं के संबंध में हुए फैसले पर असहमति जताई। इसके चलते मिनट्स को मंजूरी नहीं दी जा सकी। काउंसिल की अगली बैठक 18 से 20 अक्टूबर को होगी। इसमें जीएसटी की दरों पर विचार किया जाएगा।
काउंसिल की बैठक में हुए फैसलों के बारे में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि इसमें एक अहम मुद्दा केंद्र और राज्यों की ओर से फिलहाल दी जा रही परोक्ष कर छूटों का था। केंद्र सरकार ने पर्वतीय और पूर्वोत्तर के 11 राज्यों को केंद्रीय उत्पाद शुल्क के संबंध में कुछ छूटें दे रखी है। इसी तरह राज्यों ने भी अपने यहां उद्योगों को कई प्रकार की परोक्ष कर छूटें और प्रोत्साहन दिए हुए हैं।
जेटली ने कहा कि संभव है कि कुछ कर छूटें चरणबद्ध तरीके से समाप्त हो जाएं, लेकिन जो बची रहेंगी, उन्हें जीएसटी सिस्टम में कैसे समाहित किया जाए, इस बारे में काउंसिल ने विचार किया। काउंसिल में इस पर सहमति बनी कि जीएसटी सिस्टम में सभी छूट प्राप्त एंटिटीज (व्यक्ति, कंपनी या संस्था) पर टैक्स लगेगा। जब उन पर टैक्स लागू हो जाएगा, तो बाद में उनसे वसूलने वाली केंद्र या राज्य सरकार को अपने बजट के माध्यम से उक्त कर की राशि वापस करनी होगी। इस तरह जीएसटी सिस्टम में सभी को टैक्स का भुगतान करना पड़ेगा। अलबत्ता, अगर आपको टैक्स से छूट प्राप्त है और केंद्र या राज्य सरकार इस छूट को जारी रखना चाहती है, तो आप चुकाई गई कर राशि को वापस पाने के अधिकारी होंगे।
जेटली ने कहा कि कौन सी टैक्स छूटें खत्म होंगी या बरकरार रहेंगी, इस बारे फैसला केंद्र और राज्य करेंगे। राज्यों को तय करना होगा कि उन्हें किन उद्योगों को टैक्स छूट की सुविधा देनी है, उसके बाद वे उनसे वसूले गए टैक्स की राशि को लौटा सकेंगी।
यह जरूरी नहीं कि सभी प्रकार की टैक्स छूटें समाप्त हो जाएं, अगर आप कुछ को जारी रखना चाहते हैं तो पहले टैक्स का भुगतान करना होगा। बाद में भले ही केंद्र या राज्य सरकार उसे आपको वापस कर दे।
जीएसटी काउंसिल की पहली बैठक में हुए फैसलों के मिनट्स को मंजूरी नहीं जा सकी। दो राज्यों ने 22-23 सितंबर को हुई काउंसिल की पहली बैठक में सेवा कर के 11 लाख करदाताओं के संबंध में हुए फैसले पर असहमति जताई। इसके चलते मिनट्स को मंजूरी नहीं दी जा सकी। काउंसिल की अगली बैठक 18 से 20 अक्टूबर को होगी। इसमें जीएसटी की दरों पर विचार किया जाएगा।
3. दक्षिण चीन सागर में नहीं चलेगी चीन की मनमानी : अमेरिका:-
दक्षिण चीन सागर पर अमेरिका ने चीन को फिर से चेताया है। उसने विवादित क्षेत्र में चीन की मनमानी नहीं चलने देने की बात कही है। अमेरिकी रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने कहा कि चीन को अपने फायदे के हिसाब से नियम चुनने की आजादी नहीं है, क्योंकि नियम-कायदे सभी देशों पर समान रूप से लागू होते हैं।
सेन डियागो में अमेरिकी युद्धपोत कार्ल विन्सन का दौरा करने के दौरान उन्होंने विवादित क्षेत्र में चीन की हालिया गतिविधियों पर भी गंभीर चिंता जताई। कार्टर ने कहा, ‘समुद्र, साइबर स्पेस और अन्य स्थानों पर चीन की हालिया गतिविधियों को लेकर अमेरिका की गंभीर चिंताएं हैं। कई बार ऐसा लगता है कि बीजिंग उन सिद्धांतों को चुन लेना चाहता है जिनसे वह फायदा लेना चाहता है और कुछ सिद्धांतों को वह कमजोर करने की कोशिश करता है।’
उन्होंने कहा,‘नौवहन की स्वतंत्रता के अधिकार के कारण ही चीन के पोत और विमान आवाजाही कर पाते हैं। लेकिन, उसी अधिकार का इस्तेमाल जब क्षेत्र के अन्य देश करते हैं तो वह उनकी आलोचना करता है। नियमों का पालन ऐसे नहीं होता। वे हर देश पर समान रूप से लागू होते हैं।’ उल्लेखनीय है कि चीन समूचे दक्षिण चीन सागर पर अपना अधिकार बताता है। फिलीपींस, वियतनाम, ताइवान, मलेशिया, ब्रूनेई जैसे देश भी इसके अलग-अलग हिस्सों पर अपना दावा करते हैं। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने इस क्षेत्र पर चीन का एकाधिकार खारिज कर दिया था। लेकिन, उसने फैसला ठुकराते हुए क्षेत्र में अपनी गतिविधियां तेज कर रखी है।
दक्षिण चीन सागर पर अमेरिका ने चीन को फिर से चेताया है। उसने विवादित क्षेत्र में चीन की मनमानी नहीं चलने देने की बात कही है। अमेरिकी रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने कहा कि चीन को अपने फायदे के हिसाब से नियम चुनने की आजादी नहीं है, क्योंकि नियम-कायदे सभी देशों पर समान रूप से लागू होते हैं।
सेन डियागो में अमेरिकी युद्धपोत कार्ल विन्सन का दौरा करने के दौरान उन्होंने विवादित क्षेत्र में चीन की हालिया गतिविधियों पर भी गंभीर चिंता जताई। कार्टर ने कहा, ‘समुद्र, साइबर स्पेस और अन्य स्थानों पर चीन की हालिया गतिविधियों को लेकर अमेरिका की गंभीर चिंताएं हैं। कई बार ऐसा लगता है कि बीजिंग उन सिद्धांतों को चुन लेना चाहता है जिनसे वह फायदा लेना चाहता है और कुछ सिद्धांतों को वह कमजोर करने की कोशिश करता है।’
उन्होंने कहा,‘नौवहन की स्वतंत्रता के अधिकार के कारण ही चीन के पोत और विमान आवाजाही कर पाते हैं। लेकिन, उसी अधिकार का इस्तेमाल जब क्षेत्र के अन्य देश करते हैं तो वह उनकी आलोचना करता है। नियमों का पालन ऐसे नहीं होता। वे हर देश पर समान रूप से लागू होते हैं।’ उल्लेखनीय है कि चीन समूचे दक्षिण चीन सागर पर अपना अधिकार बताता है। फिलीपींस, वियतनाम, ताइवान, मलेशिया, ब्रूनेई जैसे देश भी इसके अलग-अलग हिस्सों पर अपना दावा करते हैं। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने इस क्षेत्र पर चीन का एकाधिकार खारिज कर दिया था। लेकिन, उसने फैसला ठुकराते हुए क्षेत्र में अपनी गतिविधियां तेज कर रखी है।